Friday, February 26, 2010

आज संदीप का मेल मिला , शादी की साल गिरह पैर उसने हमारे अंदाज को कविता के रूप में जाना ,,,
अर्ज्ज्ज़ हे , संदीप भाई ....


अभी शादी का पहेला ही साल था ,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था ,
खुशिया कुछ यू उमड़ रही थी ,

सुबह सुबह मैडम का चाय लेकर आना ,
थोडा शरमाते हुए हमे नींद से जगाना ,

वो प्यार भरा हाथ हमारे बालो में फिरहाना,
मुस्कराते हुए कहेना की ,
डार्लिंग चाय तो पि लो ,जल्दी से तैयार हो जाओ ,
आपको क्लिनिक जाना हे ,

घरवालीभगवान् का रूप ले केर आती थी ,
हम सास भी लेते थे तो नाम भी उसी का होता था ,

पर अब ..........
सुबह सुबह मैडम का चाय लेके आना ,
टेबल पर रख केर जोर से चिल्लाना ,

आज क्लिनिक जाओ तो गोलू ( हमारे साहब जादा),
को स्कूल छोड़ते जाना ......
सुनो एक बार फिर वोही आवाज़ आई ,
क्या बात हे अब तक छोड़ी नहीं चारपाई ,

अगर गोलू लेट हो गया तो देख लेना ,
गोलू की टीएअचेर्स को तुम ही सम्हाल लेना ,
ना जाने घर वाली कैसा रूप लेकर आई थी ,
दिल और दिमाग पैर काली घटा छायी थी ,

सास भी लेते हे तो उन्ही का ख्याल होता हे ,
अब हर समय जेहन में एक ही ख्याल होता हे ,

क्या कभी वो दिन लोट केर आयेगे ,
हम एक बर्र फिर कुवारे हो जाआएंगे .....
जय हो ........हमेशा मस्त रहो !!!

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