दिन खास हे ,तो सोचा दिल के करीब की कोई कविता आज अपने दोस्तों को पेश करू ,जैसे कोई पुरानी डायरी मै कोई पुराना गुलाब सहेज क़र रखा जाता हे , वैसी ही सहेज क़र रखी थी येह रचना .....
शादी से पहेले लिखी ये कविता जिसे पत्र द्वारा भेजी थी वही आज मेरी जिंदगी हे, और आज हमारी शादी को वक़्त हो, चला हे , लगता हे कल की ही बात हो ,इस मौके पैर चंद लाइन कहना चाहूँगा ,
अर्ज़ हे ,
आज तक वो बैंड बाजे शामियाना याद हे ,
खुद को इतनी धूम से सूली पैर चड़ना याद हे ,
तीन मोके भी दिए काजी ने गोर ओ फिक्र के,
एक ना काफी थी हेर मुश्किल से बचने के लिए ,
हम को हां का फैसला वो एह्मकाना याद हे
घर जिसे लाये थे हम रोटी पकाने के लिए ,
अब पकाती हे हमे , उसका पकाना याद हे ,
ना सिलाई जानती हे ना कुकिंग मालूम हे ,
हां उसे शोहर को उंगली पर नचाना याद हे ,
उसकी हर बात पर कहेना ही पड़ता ही बाजा ,
इस तरेह उसका हमे बरसो बजाना याद हे ,
मानते हे , हम हुसैनी हादसा होगा शहीद ,
क्योकि तुम को वाकेया इतना पुराना याद हे ........
आप सब को मेरी इस कविता का सामना करने का बहुत बहुत शुक्रिया ...(वैसे जिंदगी मे कॉलेज से ले क़र आज तक हम कभी सीरियस नहीं रहे ....हमेशा मस्त रहो .....
संजय
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